साहित्यिक पुरखा मन के सुरता : द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र

तिरिया- (कुण्डलिया छन्द)

तिरिया ऐसी ब्याहिये, लड़ै रोज दस बेर
घुड़की भूल कभी दिए, देखै आँख लड़ेर
देखै आँख लड़ेर, नागिन सी फुन्नावै
कलह रात दिन करै, बात बोलत भन्नावै
जीना करै हराम, विप्र बाबा की किरिया
मरने का क्या काम, ब्याह लो ऐसी तिरिया ।

गैया –

गैया ऐसी पालिये कि खासी हरही होय
पर धन् खा घर लौटिहै, लीजै दूध निचोय
लीजै दूध निचोय-मुफ्त का माल उड़ाओ
पारा बस्ती शहर भरे की गाली खाओ
पहुंचे काछी द्वार, करै फिर दैया मैया
शहर बसो तो विप्र, पाल लो हरही गैया ।।

द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’

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